परम सत्य
पहले सिर्फ़ सुना था,
सृष्टि रचयिता, जीवन दाता
अखंड शक्तिदाता,
परम ज्ञानी ,सर्वग्याता,
करुणामयी, तेजस्वी,
परम ईश्वर,
पालनहार - एक यथार्थ है,
वह अखंड सत्य है
उसके सिवा सब मिथ्या है,
कण-कण मैं उसका वास है
फिर एक दिन,
जब मानसपटल ने
अपनी सीमाओं के परे
विभिन्न पहलुओं को देखा,
देखा---
अपंग में सांग से अधिक हौसला,
ग़रीब में धनाढ्य से ज़्यादा संतोष,
कृषक में मेघवृष्टि में अटूट विश्वास
देखा--
सामान्य मानव में भी आस्था की नींव
भौतिकता से परे , उससे विलक्षण, उससे अद्भुत,
अकल्पनीय, अतुलनीय, अलौकिक , आश्चर्यजनक
और अप्रासंगिक -
ऐसे परम सत्य में निष्ठा,
उसे पाने की उत्कट अभिलाषा,
मोक्ष प्राप्ति की इच्छा ,
उस परमात्मा में लीन होने की
उसी में सम्मिश्रित होने की
उसके अस्तित्व मैं आवने अस्तित्व को खो देने की आशा,
और तब,
लगने लगा की आज तक
जो सिर्फ़ सुना था
उसमें लेशमात्र भी असत्य का कोई कण नही है...
वास्तव में वह है ,
हर कण में है
और मैने उसको स्वयं में
और समस्त्य सृष्टि में
समस्त्य प्राणियों के विश्वास में
प्रतिलक्षित होते देखा है..